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हमारे शहर मे भी निर्भया कांड का आयोजन हुआ जिसके चलते सभी बुद्धजीवी व समाजसेवी सक्रिय हो उठे । हालाँकि दिल्ली के बुद्धजीवियो का मानना था तुम्हारा शहर टाइप 2 श्रेणी में आता है अतः तुम्हारे यहाँ कांड नहीं हो सकता l यह मात्र एक बलात्कार है इसके पीछे उनकी महानगरीय सामंतवादी मानसिकता थी, ऐसा लखनऊ के बुद्धजीवियो का मानना है वही कुछ समाजसेवोको ने उन्हें कुंठित व इर्स्यालू करार दिया खैर कांड होते ही पत्रकारों वा लेखको ने लेख लिख मारे जोकि काफी दिन से ऐसे अवसर की तलाश में थे । उन्होंने इस घटना को निर्भया कांड के समकछ बताने का पूरा प्रयास किया परन्तु दिल्ली केंद्रित मीडिया ने इसे दिल्ली की बराबरी करने का प्रयास माना l हालाकि ये बात दूसरी थी की लखनऊ से उतनी टी आर पी नहीं आती जितनी दिल्ली से आती है ।
घटना होते ही सत्तापछ के मातृभाषा प्रेमी एक बड़े नेता जी ने आकाशवाणी की ‘आबादी के अनुपात में सबसे कम बलात्कार प्रदेश में होते है ‘यह सुनते ही नौकरशाह वर्ग चिंतित हो उठा उसने तत्काल इस अनुपात को सही करने के लिए आनन फानन में ‘समग्र बलात्कार योजना’ के नाम से प्रस्ताव बनाकर पेश किया l नौकरशाहो का एक वर्ग जो की काफी समय से विदेश यात्रा की फ़िराक में था उसने प्रस्ताव में जोड़ा की इस योजना को लागू करने के लिए अमेरिका में ट्रेनिग आवश्यक है lलेकिन नौकरशाहो का दूसरा वर्ग जिसका विदेश जाने का कोई जुगाड़ न था उसने बताया की पड़ोस के थाईलैंड नामक राष्ट्र में कम खर्च पर यह ट्रेनिंग ली जा सकती है अतः यह योजना फाईलो में दब कर रह गई l
इस दौरान पुलिस महकमा भी काफी सक्रिय रहा कुछ उत्त्साही पुलिस कर्मियों ने सुझाव दिया प्रेस कान्फ्रेस शबाना आज़मी से कराइ जाये l जिससे की पुलिस की छवि बौद्धिक वर्ग तक भी पहुच सके परन्तु यह संभव न था अतः उनसे मिलते जुलते वस्त्र धारण करने वाली महिला पुलिस अधिकारी से कराना पड़ा l,परन्तु बोद्धिक वर्ग ने ‘नक्कालो से सावधान कहकर” झासे में आने से मना कर दिया l इस घटना का लाभ कुछ ऐसे पुलिस कर्मियों ने भी उठाने की कोशिश की जो काफी समय से लाभ के पद पर न थे उदाहरण के लिये एक पुलिस कर्मी ने फेसबुक पर आलोचकों को एक चेतवानी जारी की जिसमे ‘जागकर .रातभर. वर्क आउट .छेद बंद कर दूंगा .मुझसे बात करो .मोबाइल नंबर’ आदि शब्दों का प्रयोग किया गया था l
परन्तु जो वर्ग सर्वाधिक सक्रीय रहा वो था फेसबुक प्रयोगकर्ताओ का lयह
वर्ग तब जीवित हुआ, जब पीडिता के शव की प्राकृतिक अवस्था में चित्र फेसबुक पर वितरित किया गया l पुलिसकर्मियों के अनुसार वितरण में एक ऐसे दल की महिला नेता का हाथ था जो की तुम तड़ाक छोड़कर लखनऊ की पहले आप की संस्कृति में विश्वास करता है तथा नेत्री के उपनाम का वर्णन एक प्रसिद्ध लोकगीत लाबा लाबा गूघट में भी प्राप्त होता है l
चित्र वितरित होते ही फेसबुक प्रयोगकर्ता भारतीय परपरा के अनुसार कई जातियों वा समूहों में विभाजित हो गए l प्रथम समूह वो था जो दिल में है वही दिमाग में और दैनिक जीवन में है का पालन करता है तथा सामायिक समाज में काफी हेय दृष्टी से देखा जाता है l इस समूह ने शव के जीवित अवस्था को लेकर काफी कल्पनाये की परन्तु सामाजिक भय से ज्यादा उद्धरित नहीं किया .द्वितीय वर्ग वह था जो फेसबुक पर आधिकाधिक नैतिक बनने के प्रयास में लिप्त पाया जाता है इस वर्ग ने वाक्यांस. लघुगीत. दिशानिर्देश; समाज की तत्कालीन इस्थिति पर लेख. व नैतिकता पर जोर दिया l
तीसरा समूह खोजी प्रविृति का था उन्होंने इस घटना को पुर्व अमेरकी राष्ट्रपति से जोड़ने का प्रयास किया जिनके भ्रमण का कार्यक्रम घटनास्थल के पास उन्ही तारीखों में था पूर्व राष्ट्रपति के चरित्र को देखते हुए यह अधिक काल्पनिक न था परन्तु लाइक के अभाव में यह वर्ग अतिथि देवो भव कहता हुआ विलुप्त हो गया l
चौथा वर्ग घटना के कारणों के चिंतन में व्यस्त हो गया इसने मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को इसका कारण बताया तथा इसकी आड़ मे नगर वधुओं के ब्यसाय की राष्ट्रीयकरण करने की मांग की l.
पांचवा वर्ग मध्यम व निम्न मध्यम वर्ग के सामान्य जनो का था जिसे डरपोक मृतप्राय माना जाता था आपेछानुसार इनसे ज्यादा कुछ आशा भी नहीं थी यह अपनी संतानों की खैर मनाने में व्यस्त रहा ।
इसी बीच एक युवा जिसके फेसबुक प्रोफाइल के अनुसार वह लेखक पत्रकार व कवि का सम्मलित संस्करण है मौके का लाभ उठाते हुऐ दावा किया की लोहा ही लोहे को काटता है और उसने एक ऐसी अभिनेत्री की प्राकर्तिक अवस्था में चित्र को फेसबुक पर संलग्न कर दिया जिनके बारे में माना जाता है कि वो अपने मूल राष्ट्र में पतित व्वसाय में लिप्त थी तथा महामुनि महेश भट्ट उनका उद्धार कर भारतवर्ष ले में आये थे l खैर ये सब देखते हुए मुझसे भी रहा न गया और मैंने भी एक लेख लिख मारा ।
चलते चलते
अबे आसुफ्दौला सुन रहे हो फिर ना बसाना कोई लखनऊ.l
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